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________________ क SM Mahavam A kende Acharya Sh Kailasager Gamandi शांतिना- थना सति पाय; पञ्चमी तप विधिश्युं करो रे, निर्मल ज्ञान उपाय; भविक जन कीजें ए तप सार, जन्मपंच क. सफल निरधार, लहीएं सुख श्रीकार, भ०॥ ए आंकणी ॥१॥ समवसरण देवे रच्यु रे, बेठां नेम स्तवन. जिणंद; बारे परखदा अगले रे, भाखे श्री जिन चंद; भ० ॥२॥ ज्ञान वडो संसारमा रे, शिव पुरनो दातार; ज्ञान रुप दिवो कह्यो रे, प्रगव्यो तेज अपार, भ०॥३॥ ज्ञान लोचन जब निरखे रे, तव देखे लोक अलोक; पशुअ परें ते मानवी रे, ज्ञान वीना सवि फोक,० भ०॥ ४॥ ज्ञानी श्वासो | श्वासमा रे, कर्म करे जे नाश; नारकीनां ते जीवने रे, कोडि वरसविलास, भ०॥५॥ आराधक अधिको कह्यो रे, भगवति सूत्र मोझार कीयावंत ते आगले रे, ज्ञानी सकल सिरदार, भ० ॥६॥ कष्ट क्रिया तो सह करें रे, तेहथी न कोइ सिध, ज्ञानक्रिया जब दो मिलें रे, तब पामे बहु ऋद्ध; भ०॥७॥ कोणे आराधी एह वीरे, कोने फली तत्काल; तेह उपर तुमें सांभलो रे, एहनी कथा है। रसाल, भ०॥८॥ जंबूद्वीप सोहामणो रे, भरत क्षेत्र अभीराम; ॥ पद्मपुर नगरें शोभतो रे अजीतसेन राय नाम, भ०॥९॥शील सौभाग्य आगली रे, यशोमती राणी नारी; ॥ वरदत्त ककक ॥ ५७॥ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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