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________________ पए आंकणी, ॥ खंडाणा पापनां पूरो जी; जे भवियण सेवा करे, सुख पामें भर पूरोजी॥आदीयाणा, ८२॥ मूरति मोहन वेलडी, दीठे अति आणंदो जी; सिंहासण सोहे सदा, गगने जैसा रविचंदो जी ॥ आद्रीयाणा ॥ ८३॥ प्रतिमा दीठे सुख सदा, प्रणमुं जोडी हाथो जी; त्रण प्रदक्षिणा देइ करी, मारे मुक्तिनो साथो जी॥ आद्रीयाणा ॥ ८४ ॥ श्रावके अति उद्यम करी, कीधो जिन प्रासादो जी; काढीयो पाप ठेली करी, पुण्ये जगे जस वाधो जी॥ आद्रीयाणा, ॥ ८५॥ ___ कलश-श्रीवीर पाटे परंपरा गते, आणंद विमल सूरीसरो; श्री विजय दान सूरि तास पाटे, हीर विजय सूरि गणधरो; श्रीविजयसेन सूरि तास पाटें, विजयदेव सूरि हित धरो; कल्याण विजय Fउवप्नाय पंडित, शुभ विजय शिष्य जय करो ॥ ८६ ॥ " इति श्री वर्द्धमान जिन सत्तावीश भव स्तवनम् सम्पूर्णम् ” “अथ श्री सौभाग्य पञ्चमी स्तवन" ढाल-॥१॥ इडर आंबा आंबलीरे ॥ ए देशी ॥ श्री गुरु चरणे नमी करी रें, प्रणमि सर For And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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