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________________ ShiMahayeJainrachanaKendra arya Shn.kailassagarsuriGyanmandir स्तवन. शांतिना- वादी इश तो॥७४॥ अवधिज्ञानी तेरसयां तो, भमरुली, सातसें केवली जोय तो; मणपज्जव धर| थना. पांचशे तो, भमरुली, चउद पूरवी त्रणसें होय तो ॥७५॥ दोढ लाख नव सहस वली तो, भम- ॥५६॥ |रुली, श्रावक समकित धारतो;त्रिण लाख अढार सहसवलीतो, भमरुली० श्राविका ए परिवार तो॥७६॥ ब्राह्मण मात पिता हुआ तो, भमरुली, मोकल्यां मुक्ति मोझार तो;॥सुपुत्र आवी इम करे तो, भमरुली, सेवकनी करो सार तो ॥ ७७ ॥ त्रीसला देवी सुरवर थयां तो, भमरुली; ॥ सिधारथ थया देव तो, त्रीश वरस गृहवासें वस्या तो, भमरुली, बार वरस छद्मस्थ तो;॥ त्रीश वरस केवल धर्यु तो, भमपरुली, बहोतेर वरस समस्त तो ॥७८ ॥ इणि परें पाली आउखुं तो, भमरुली, दिन दीवाली जेह तो; महानंद पद पामीयां तो, भमरुली, समरुं हुं नित्य तेह तो॥ ७९ ॥संवत् सोलसें बासठो तो, भमरुली, विजया दशमी उदार तो; लाल विजय भक्तं कहे तो, भमरुली, वीरजिन भव जल तारे तो ॥ ८॥ | ढाल-॥६॥ आदर जीवक्षमा गुण आदर॥ए देशी॥समवसरणें सुखसंपत्ति मिलें, फलें मनोरथ कोडि जी;॥ रोग वियोग सवि टलें, नहिं शरीरे खोडि जी॥ ८१॥ आद्रीयाणा पुर मंडणो, For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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