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________________ SM Mahavam A kende Acham Ka B andit PROCERESEARCHCRACK बाप सुरलोकें गया तो, भमरुली, जिन साधे निज काम तो; लोकांतिक सुर तिहां कहे तो, भमरुली, लिओ दीक्षा महाराज तो ॥६७ ॥ वरसी दान देइ करी तो, भमरुली, लीधुं संयम भारी तो; एकाकी जिन विहार करतो, भमरुली, उपसर्ग नो नहीं पार तो ॥६८॥ तप चउविहार घणांकयां तो, भमरुली, एक छमासी विचारतो; बीजो छमासी कयों तो, भमरुली, पंचदिन उण उदार तो ॥ ६९ ॥ नव ते चउमासी कयौँ तो, भमरुली, बेत्रण मासी जांण तो; अढीमास बे वार कर्यां तो, भमरुली, बेमासी छ वार वखाणि तो ॥ ७० ॥ दोढमास बे वार कयां तो, भमरुली, मासखमण कीयां बार तो; बहोंतेर पास खमण कर्यां तो, भमरुली, छठ बसें ओगणत्रीश सार तो ॥७१॥ बारे वरसे पारणां तो भमरुली, त्रणसे ओगण पंचाशतो; निद्रा बे घडीनी करे तो, भमरुली, बेठा नहीं बारवरस तो ॥ ७२ ॥ कर्म खपावी केवल लडं तो, भमरुली, त्रिगडे परषदा बार तो, गणधर इग्यारे स्थापीया तो, भमरुली, जगे हुओ जय जय कार तो ॥ ७३ चउद सहस हुआ साधु भला तो, भमरुली, साधवी सहस छत्रीश तो.॥ सातसें वैक्रिय लब्धि धरा तो, भमरुली, च्यारसें For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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