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________________ SM Mahavam A kende www.kobateh.org. Acham Ka B andit पांचमें, सागरदश स्थिति जाणों जी; कौशिक द्विज पंचमें भवें, लाख एंसी पूरव मान जी; अहोउ० ॥३२ स्थूणां नयरीए द्विज थयो, पूरव लाख बहुत्तरि सार जी; हुओ त्रिदंडी छठे भवे, सातमे सोहम अवतार जी; अहोउ०॥ ३३ ॥ अग्नीद्योत आठमें भवे, चोसहि लाख पूर्व आयु जी; त्रिदंडी थइ विचरें वली, नवमें इशाने जाय जी; अहोउ०॥ ३४ ॥ अग्नीभूती दशमें भवे, मंदरपुरि द्विज होय जी; छप्पन्न लाख पूरव आउखु, त्रिदंडी थइ मरे सोय जी; अहोउ०॥३५॥ इग्यारमें भवें ते थयो, सनत कुमार देवो जी, नयरी श्वेतांबी अवतरियो, बारमें भवे द्विज हेवो जी ॥ अहोउ०3 M॥३६ ॥ चुम्मालीश लाख पूरव आउ, भारद्वीज जसु नाम जी; त्रिदंडि थइ विचरें वली, माहेंद्र तेरमें भवें ठामजी; अहोउ०॥ ३७ ॥राजगृह नयरि भव चउदमें, स्थावर बाह्मण दाखी जी; लाख चोत्रीश पूरव आउखुं, त्रिदंडी लिंग ते भाखें जी; अहोउ०॥३८॥ अमर थयो भव पन्नरमें, सनकुमार देवो जी; संसारभमि भव सोलमें, विश्वभूती क्षत्री होय जी, अहोउ० ॥ ३९ ॥ ढाल-॥३॥ सरसति अमृत वरसती ॥ ए देशी ॥ विशाखभूति धारणी नो बेटो, भुजबलि RERASHASARASE For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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