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पुण्यें ए छोटो; भगवुं कापड ते करवुं, माथे छत्रनें धरतुं ॥ १३ ॥ पाए पावडी धरश्युं, स्नान सर्वे जले करयुं; प्राणी स्थुल न मारुं, शिरमुंड चोटी ए धारुं ॥ १४ ॥ जनोइ सोवन केरी, शोभा चंदने प्रेरी, हाथें त्रिदंडीओ लेवु, मनमांहे चिंतवे एह ॥ १५ ॥ लिंग कुलिंगीनुं रचिउं, सुख कारणे एहनुं मचीउं; गुण साधुनां वखाणें दीक्षा योग्य जे जाणें ॥ १६ ॥ आणी मुनीनें आयें, | सिधो मारग स्थापें; समोसरण रचिउं जांणी, वदे भरत विनांणी ॥ १७ ॥ बारे परषदा राजें, पूछें भरत ए आजे; कोई छें तुम सारीखो, दाख्यो मरीचि नींको ॥ १८ ॥ पहिलो वासुदेव थाशें, चक्रवर्त्ति मूकाए वासे; चोत्रीशमो एह जिनवर, वर्द्धमान नमिए जयंकर ॥ १९ ॥ उलस्युं भरतनुं हैयुं, जइनें मरीचिनें कहीउं; तार्ते पदवी ए दाखी, हरिचक्री जिनपती भाषी ॥ २० ॥ त्रण प्रदक्षिणा देइ, वंदन विधिशुंकरेय; स्तवना करतो तेम, पुत्र त्रीदंडी नहीं जेम, वांदुलुं नहीं एह मर्म ॥ २१ ॥ थाशे जिनपति चरिम; इम कही पाछो ए वलीओ, गरवे मरीयचि गलीओ ॥ २२ ॥
ढाल—॥ २ ॥ पांडव पांच प्रगट हुआ | ए देशी ॥ इक्ष्वाक कुले हुं उपन्यो, माहरे चक्रवर्त्ति
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