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________________ Acharya ShnkailasianarmuriGyanmandir Shahn Kendra LAEOCALCASEASON दावे, नहिंमकुं करुंशोर; झाली दिलभीतर, घाली करश्युं जोर; जाश्यो किम दीधा; विणशिवसुख XIजिनराज, सहेजे जो देशो, तो रहेशे तुमलाज ॥३॥ अविनयमुज खमज्यो, हं छं मूढअयाण; करतानवि आवे, वीनंतडी जिनभाण; ॥ बालकजिम बोलें, कालो गहिलो बोल; ते मातपितामन, लागे अमृत तोलें ॥४॥ इणीपरेंप्रभु स्तवीओ, समकितलेश विचारे; आगम अनुसारें, मुजमतिने अनुहारे; संवतऋतु रसमुनिचंद्र ॥ १७६६ संवत्सर जाणि; भादरवे मासे, सित्तपंचमी गुणखाणि॥५॥ श्रीतपगच्छनायक, श्रीविजयरत्नसुरिंद, सुरगुरुजस आगले, करजोडिमति मंद; ॥ तसराजेपंडित, उत्तमसागर सीस०, कहे न्यायसागरप्रभुः पूरोसंघजगीश ॥६॥ " इति श्री सम्यक्त्व विचार गर्भित श्रीमहावीरजिन स्तवनम्" ___“अथ श्री महावीर स्वामिनां सत्तावीश भवनुं स्तवन" दुहा-विमल कमल दल लोयणां, दीसे वदन प्रसन्न; आद्रीयाणे श्री वीर जिन, वांदी करूं । स्तवन ॥१॥ श्रीगुरु तणां पसाउ लें, स्तवशुं वीर जिणंद; भव सत्तावीश वर्णवं, सुणजो स आणंद For Povlet And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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