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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिना थना. ॥ ५१ ॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिरे; अंगपयन्ना प्रमुखजे, शास्त्र सवेनिरखाहेरे; धन्यधन्य० ॥ १९ ॥ द्रव्यनां भाव जाण्याजिणे, सर्व प्रमाणे अशेषरे; सर्वनयेतिम तसकर्छु, विच्छार रुइ अकलेशरे; धन्यधन्य० ॥ २० ॥ दंसणनाण चारित वली, तिमतिन उत्तम कामरे; सुमति गुप्तिकिरियारुचें, तेकिरिया रुइनामरे; धन्यधन्य० ॥ २१ ॥ आगम कोविद नविहुएं, कुमय कुदिठी विजुत्तरे; संखेवरूइ तेहने कयुं, जिमचिलातीय पुत्तरे; धन्यधन्य० ॥ २२ ॥ धम्म अधम्म प्रमुख दक्ष, चरण सुय धम्मनां भेदरे; जेजिन भाषित सहहे, ||तेधम्मरुइ निरवेदरे; धन्यधन्य० ॥ २३ ॥ ए दशविध दरशणकयुं, उत्तराध्ययन मोझाररे; अध्ययनें ते अडवीसमें, न्यायसागर सुखकाररे; धन्यधन्य० ॥ २४ ॥ ढाल—॥ ६ ॥ माइ धन्नसुपनतुं ॥ ए देशी० ॥ जडजलपण पोर्ते, सिंच्युंकाठन बोलें, तससंगति लोहुं, तेहनेंपणतस तोलें; तिमहुं गुण हीणो, तोपण दास तुमारो, अवगुण उवेखी, प्रभुजी पारउतारो ॥ १ ॥ तुंगुणमणि दरिओ, उद्धरिओ जगजेणे; मुझने कांइ न तारयो, तुज संगतिनहीं तिणें; अलगो तहिं वलगो, तुंमुज दिलथी देव, अविचल पद आपो; ढीलतणी शीटेव ॥ २ ॥ नहिंतो मुझ For Pitvale And Personal Use Only पंच क० स्तवन. ॥ ५९ ॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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