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ShiMahayeJainrachanaKendra
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Achan Kailas
Gyamandi
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अण कसाय उदय हुइजी, जेहथी उपशम नासरे॥जि०॥ ११॥ उपशमथी पडतां थकांजी, नगयो मिच्छारे जाव; तावत् सास्वादन कझुंजी, उपशम स्वाद सुहावरे। जि०॥ १२ ॥ अंतर्मुहर्त कालनीजी, उपशम स्थिति गुणखाण; सास्वादन षट्र आवलीजी, वेदक समय प्रमाणरें ॥ जि०॥ १३॥ स्थिति सागर तेत्रीशनीजी, साधिक क्षायिक जाणि; बमणी स्थिति एहथी कहीजी, क्षायोपशमि एक ठाणरे ॥जि०॥१४॥ उपशम साखादन कझुंजी, आभव वेलारे पांच; वेदक एक वेला हुएजी, तिमहिज क्षायक संचरे ॥ जि०॥ १५॥ वार असंख्य उत्कर्षथीजी, क्षायोपशमिक होय; हवे वे तस गुणठाणा कहंजी, सांभलजो सहु कोइरे॥जि०॥ १६ ॥ उपशम अडगुण ठाणमांजी, अविरत गुण पदरेख क्षायिक गुणठाणे सवेजी, आदिमत्रण विणशेषरे॥जि०॥ १७॥ अविरति गुणठाणा थकीजी, जावत सत्तम ठाण; एक वेदक बीजुं इहांजी, क्षायो पशमिक जाणरे ॥जि०॥१८॥ साखादन सास्वादनेजी, भाखे अंग उवंग; न्यायें शिव सुख ते लहेजी, जसतुजआण अभंगरे ॥ जि०॥ १९॥
ढाल-॥५॥ शांतिसुधारस कुंडमां, तुंरमे मुनिवर०॥ ए देशी ॥ धन्य धन्य शासन ताहरूं,
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