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Acharya Skais
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शांतिनाथना.
॥४९॥
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मियां संगरे॥जिलाए आंकणी ॥ मिच्छा दरिशण मोहनीजी, उपशमि उपशमजाणोः धरग्रंथि भेदे कछुजी, उपशमणि प्रमाणरे ॥ जि०॥२॥ नाश उदीरण मिच्छनोजी, अनुदीरण समठाम; भयउपशमथी उपजेजी, क्षायोपशमिका नामरे॥जि०॥३॥ त्रिविधे मोह विनाशथीजी, त्रीजु क्षायिकनामः क्षपकश्रेणि चढतां हुएजी, जेहथी शिवपुर ठामरे ॥ जि०॥४॥ विपाकप्रदेशे वेदकुंजी, द्विविध उदय वीष्कंभ, उपशमतुं तेहने कहेंजी, आगममां स्थिर स्थंभरे ॥ जि०॥५॥ नाश विपाकोदय थकीजी, वेदन तेहरे नाम; उपशमि ते नवि संभवेंजी, क्षायोपशमिकठामरे॥जि०॥६॥ मिच्छा! पुद्गल वेदवाजी, शुद्ध अशुद्ध तिहां दोय; विपाक प्रदेशोदय थकीजी, अनुक्रमें समजी जोयरे॥जि० ॥७॥ अण चउ दुग मिच्छा तणांजी, पुंज खपावीरे होय; शुद्ध पुंज खपतां तिहांजी, अंतिम| पुद्गल होय रे॥जि०॥८॥ तस वेदन तेहने कझुंजी, वेदक चोथुरे नाम; उपशम वमतां पांचमुंजी, साखादन गुण धामरे॥जि०॥९॥ अंतर्मुहुर्त एकनीजी, उपशम स्थिति उवेख; उत्कर्षे षट् आवलीजी, जघन्य समय हुये शेषरे॥ जि०॥१०॥ अशुद्धपुंज जावा तणीजी, इच्छाए तिहां तास;
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