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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ | जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन ५. कथंचित् घट है और अवक्तव्य है, ६. कथंचित् घट नहीं है और अवक्तव्य है, ७. कथंचित् घट है, नहीं है और अवक्तव्य है। प्रथम भंग विधि की कल्पना के आधार पर है। इसमें घट के अस्तित्व का विधिपूर्वक प्रतिपादन है । _दूसरा भंग प्रतिषेध को कल्पना के आधार पर है। जिस अस्तित्व का प्रथम भंग में विधिपूर्वक प्रतिपादन किया गया है, उसी का इसमें निषेधपूर्वक प्रतिपादन किया गया है। तीसरा भंग विधि और निषध दोनों का क्रम से प्रतिपादन करता है। पहले विधि का ग्रहण करता है और बाद में निषेध का। यह भंग प्रथम और द्वितीय दोनों भंगों का संयोग है। चतुर्थ भंग विधि और निषेध का युगपत् प्रतिपादन करता है । दोनों का युगपत् प्रतिपादन होना, वचन के सामर्थ्य के बाहर है। अतएव इस भंग को अवक्तव्य कहा गया है। पाँचवाँ भंग विधि और युगपत् विधि-निषेध दोनों का प्रतिपादन करता है। प्रथम और चतुर्थ के संयोग से यह भंग बनता है। छठा भंग निषेध और युगपत् विधि और निषेध दोनों का कथन है। यह भंग द्वितीय और चतुर्थ-दोनों का संयोग है। सातवाँ भंग क्रम से विधि और निषेध और युगपत् विधि और निषेध का प्रतिपादन करता है । यह तृतीय और चतुर्थ भंग का संयोग है। 'कथंचित घट है । इसका क्या अर्थ है ?' किस अपेक्षा से घट है। स्वरूप की अपेक्षा से घट है और पररूप की अपेक्षा से घट नहीं है । सर्व पदार्थ स्वरूप की अपेक्षा से हैं, पररूप की अपेक्षा से नहीं है । स्वरूप और पररूप को समझना आवश्यक है। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव से जिसकी विवक्षा होती है, वह स्वरूप या स्वात्मा है। वक्ता के प्रयोजन के अनुसार अर्थ का ग्रहण करना, स्वात्मा का ग्रहण कहलाता है । इसके विपरीत परात्मा का ग्रहण होता है। वस्तु के स्वरूप और उसके पररूप को समझने से वास्तविक निर्णय हो जाता है, सही रूप सामने आता है। चार निक्षेप एक शब्द प्रयोजन के अनुसार अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। प्रत्येक शब्द का चार अर्थों में विभाग किया जाता है । इसी अर्थ विभाग को न्यास एव निक्षेप कहते हैं। ये चार विभाग हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य For Private and Personal Use Only
SR No.020394
Book TitleJain Nyayashastra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni
PublisherJain Divakar Prakashan
Publication Year1990
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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