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________________ [5] जैन लिंग निर्णय / मत के जती फिरते हैं सिवाय ढूंढीयों के मुख बांधना किसीने न च नाया श्रीवीतराग सर्वज्ञ का बचन भी उठाया क्योंकि देखो श्रीपन्नवणां तत्र के भाषा पद में कहा है कि उपयोग अर्थात् विचार करक चारों भाषा बोलने वाला अराधक है और बिना उपयोग बोल तो विराधक है इम पाठके देखने से तो मख बांध ले और बिना उपयोग से बोले तो कदापि अराधक न होगा किंतु विगधकही होगा हमने तो इस जगह किंचित भावार्थ दिखाया है उस सत्र के भाषा पदमें भिन्न 2 दरसाया है उस जगह मुख बांधने का जिकर किंचित भी न आया है तुमने मुख. बांधने का कुपंथ कहां से चलाया है माधु का नाम धरा पशू अजान स्त्री बालकों को भय उपजाया है साध का भेष वीतराग ने सर्व जीवों को निर्भय बतलाया है हम तुमको उत्तराध्येन 26 उनतीसवां प्रश्न दूसरे में बतलाते हैं उसकू देख कर इस कुलिंग कू टतारो अपनी सद्गति को सम्हारो गुरु का उपदेश सुन मुखपत्ती हाथमेंही धारो जिससे जिन आज्ञा ले होवै तुम्हारो निस्तारो // पाठ:--पडिरुषया ऐणभंतेजीवेकिंजणयइ पडिरुवयाए लागवीयं जणयइलहू भूएणंजीवे अप्पमत्ते पागडलिंगेपसथ्थ लिंग विसुद्धसमत्ते सत्तलमीएसम्मेसठवपाणभूय जीवसत्तेसुविस सणी जरुव अप्पपडिलेहेजीडदिए विउओतवसमीइ समन्नागए ধাৰাৰ ___ अर्थ:... स्थिवरकल्पी प्रमुख माधु माया करके रहित जतिपने का भेष लेकर जो साधु माया करके रहित होय मी हे पूज्य वो जीव क्या उपार्जन करै हे गौतम माया करके रहित जो साधू होय वो द्रव्यसं अल्प उपगरण अर्थात् उपाधि और भावसं अप्रतिवस्था पना उपार्जन करे क्योंकि द्रव्य सं उपगरण का भार करके रहित अर्थातू हलका होय और भावसं प्रमाद करके रहित होय इस रीति / से स्थिवरकल्पी प्रमख प्रगट जती का भेष होय वो जीव दयाके inesam -
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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