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________________ कुमतोच्छेदन भास्कर // [57 ] इन दोनों दृष्टांतों में अच्छा और बुरा अर्थात् मुख बांधने वाले वा मुख खुलेवाले को भला और बुरा विद्वजन कहेंतो आश्चर्य क्या परंतु नाई,धोबी,कुम्हार,भील आदि पामर पुरुष भी तुच्छ बुद्धि वाले भला बुरा कह सकते हैं हा इति खेदे जैन धर्म में कैसी व्यवस्था होगई सूत्रों की बातें सब खोगई ममोकल्पित गतों में दुनिया मोहगई इसलिये हे भोले भाईयो सर्वज्ञवीतरागका कहना है कि बोलने में उपयोग राखो जैन धर्मका मजा चाखो मिथ्या मोह बंधने का उपदेश क्यों भाषो दूसरा औरभी सुनो कि श्रीदसवै कालक अध्येन 7 में भाषा बोलनेकी शद्धि कहीसो 57 वीं गाथा और अर्थ दिखातेहैं उसके अर्थ में किंचित पन्नवणा सूत्रका भी भावार्थ दर्शाते हैं तुम्हारे संदेहको भगातहैं आगे मरजी तुम्हारी / पाठः- परीसभासं सुसमाहिइंदिऐ चउकसायावगए भणीसीऐ सन्निधणेधुणेमलंपुरेकंडं आराहए लोगमिणताहा परंतवेमी॥ अर्थः- आलोची अर्थात विचार कर भाषा बोलने वाला जती समाथिवन्त जितेन्द्रो च्यारकषाय करके रहित व्यसूं भावसं ने सराथ अर्थात प्रतिबंध करके रहित ऐसे जती अर्थात मुनि अने गाम गाम में अपना पाप कर्म रूपी मेल पूर्व जन्म किया हुवा इस लोक परलोक को अराधे ऐसा अर्थ शिष्य को श्री संजय भवस्वामी ने कहा इस भाषा अध्येन में सर्व भाशु बोलने का रूपकहा परंतु इस अध्येनमें ऐसा न कहा जो साधु . मुख बांधके बोले सातो अराधक नहीं तो विराधक इस जगह तो सर्ब अध्येन में च रकषायक करके रहित भाषा बोलना कहा परमपरासे भी किसी गच्छमें साधु मुख बांधकर के फिर विचरे ऐसा देखना तो क्या परंतु सनाभी नहीं बल के लोंकाने जतियोंके देशके ऊपर जिन प्रतिमा वा जिन मंदिरका पूजना वा बनाना निषेध किया लेकिन मख बांधना न देखा वा सुनाभी नहीं क्योंकि नागोरी गुजराती लोगोंके
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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