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________________ [ 52] जैन लिंग निणर्य // बजरंगजी के पास सूरत में दीक्षा लिराई उसने गुरुको बोसराय अष्टप्रहर मुखपर मुहपती बांधना चलाई इसलिये बीचमें कुन्निंग चला दुखदाई भव्यजीवों के हृदय से जैन धर्म की श्रद्धा उठाई शुभ गती छड़ाय कर दुर्गति की राह बताई हमारी करुणा ने भव्य जीवों के कल्याण हेत सत्र की शाखा दिखाई आतमा का हित करनेवाला भव्यजीव निर्णय करेगा तो होगा उसको सुखदाई मत पक्षी होगा तो अपनी क्यों कर करेगा भाताई इतना सुनकर कुमति मंडन समति खंडन मख बांधने वाले ढिया कहते है कि भगवान महावीर स्वामी के निण समय भस्म ग्रह 2000 वर्ष का आया था सो भस्म ग्रह ऊत्तर क बाद लोकानें दया धर्म प्रगट किया उत्तर भोदेवानप्रिय ये तेरा वहना महा मषाबाद अनंत मंसार का हत है क्योंक देखो जब कुछ दिन के बाद साधु साध्वी विच्छेद गये तो फिर तीर्थकरके दिन माघ साक्षी की थापना जैन शास्त्र क अन मार दूसरा कोई नहिं करसक्ता तब कोइ एक ढूंढिया ऐसा कहते हैं कि नहिं जी भस्म ग्रह के जोरम उदे उद माधु साध्वी की पूजा कम होती जायगी फिर भस्मग्रह के उतरने से माधु साध्वी की एजा विशेष होगी इस हतुप लोकांमें दया धर्म चलाया और गुण को प्रतिबोध कर साधु बनाया लेकिन उपदेश दिग पण सिर न मुंडाया साधु मार्ग उसने चलाया उत्तर भोदेवानुप्रिय अभी तेरे को शास्त्रों की यथावत् खबर नहीं क्योंकि देख भस्म ग्रह उत्तरा और हाली तीनसो तेतीस 333 वर्ष का धुमकेतु नाम ग्रह है शासन के ऊपर आया जिसके जोरसे कुमति पंथ चलाया इस कुमति पंथ का शास्त्रों में लेख भी पाया सोही दिखातेहैं कि बंगलिया सूत्र में कहा है कि बावीस गोटीला पुरुषकाल करके संसार में नीच गति तथा बहुत नीच कुलों में परिभ्रमण करे बाद मनुष्य भव पावगे और बनियों के घरमें जन्म लेकर श्रावग कुल पायकर जुहीरजगह उपजेंगे और बालअवस्था छोड़ के बाद दुष्ट कशील बुग आचरण अंगिकार करके जिन आगम सं विरुद्ध
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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