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________________ कुमतोच्छदन भास्कर // [51, विशेष निकलैगी तो उससे वायकायकी हिंसा होगी क्योंकि देखो जिस जगह दो मार्गनिकलने के हैं उस जगह निकलने में कम जोर पड़ता है जब एक को बंद करे तब एक के निकलने में विशेष जोर पड़ता है इस दृष्टांत से जानो कदाग्रह को मत तानो जो तुम कहो कि हम परीसा सहते हैं यह कहनाभी तुमारा शास्त्रों का अनजानपणा दर्शाता है क्योंकि देखो उत्तराध्यनजी के दूसरा अर्थात परीसा अध्येन में बाइस परीसा के नाम कहे जिससे मेल परीसा त्रण परीमा आदि बाइस नाम कहे पंतु मुख बांधने में जी अमूजे ऐसा तेइसमा परोसा तो न कह्या इसलिये तुमारे कहने मुजब अरिहंतदेव सर्वज्ञ भी न ठहरा इसलिये तुमने कलिंग भेष को पहरा जभी तुम्हाग भंडा दाखे चेहरा जैन शास्त्र में मुख बांधना न ठहरा क्योंकि देखा परपरा से भी मुंहपत्ती बांधना नहीं देखाता है सोइ दिखाते हैं कि श्रीमाहापौर स्वामी के पाठ श्रीसुधर्मा रकामी बैठे और उनके परंपरामें अनेक अाचार्य हुवे उनके नाम वा गुण से अनेक गच्छादि भेद हवे उन गच्छों में भी अनेकगादी आदि भेद और कई तरह की परपना आदि में भेद होगया परंतु मुंह किसीने न बांधा दम। श्रीपारश्वनाथ के सन्तानी या श्रीकशीकुमार पहली परंपरा को छोडकर जनमत के भेद मिटाने के वास्ते और भव्यजीवों के वास्ते वा कल्याण के वास्ते शामनाति श्रीमहावीर स्वामी को आचरना को अंगिकार किया और उनकी परंपरामें श्री रत्नप्रभुसुरोजी हुवे जीन्होंने नये रजपूतों को उपदेश दे ओसवाल जानबनाइ और उसी ओसानगरी में श्रीमहावीर स्वामी के बिंब की प्रतिष्ठा कराई उनकी परंपरा में मौज़द है परंतु मुंह न बांधा रे भाइ लोकालहिया ने मूर्ति पूजन का निषेध किया परंतु मुख बांधने की राह उसने भी न चलाई बिना गुरु भोले भाइयों लोकाने लोका का उपदेश सुनलीनारे भाई लोका के कहने से गुरु बिना भेष परह जिन प्रतिमा को निदा उठाई उसमें भी मादी आदिक कई भदे | हुवे अष्टप्रहर मुंहपत्ती न लगाई कुछ दिन के बाद लबजीये -
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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