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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन काल-गणना विक्रमादित्य के बाद २०० वर्ष बीतने पर यह (पाचारांग का ) विवरण बनाया ।" आर्य स्कंदिल थेरावली के अंत में आर्य स्कंदिल का वृत्तांत और उनके किए हुए सिद्धांतोद्धार का वर्णन दिया है, पाठकगण के अवलोकनार्थ यह वर्णन भी हम थेरावली के ही शब्दों में नीचे उद्धृत करते हैं " अब प्रार्य स्कंदिलाचार्य का वृत्तांत इस प्रकार हैउत्तर मथुग में मेघरथ' नामक उत्कृष्ट श्रमणोपासक और जिनाज्ञा-प्रतिपालक ब्राह्मण था, उसके रूपसेना नाम की शीलवती की थी और सेमरथ नामक पुत्र था। ___ एक बार ब्रह्मद्वीपिका शाखा के प्राचार्य सिंह स्थविर विहार-क्रम से मथुरा में पधारे और उनके उपदेश से वैराग्य पाकर ब्राह्मण सेमरथ ने उनके पास दीक्षा ली। उस अवसर में प्राधे भारतवर्ष में बारह वर्ष का भयंकर दुष्काल पड़ा जिसके प्रभाव से भिक्षा न मिलने के कारण कितने ही जैन निर्मथ वैभार पर्वत तथा कुमारगिरि आदि तीर्थो में अनशन करके स्वर्गवासी हो गए। उस समय जिनशासन के अाधारभूत पूर्व संगृहीत ग्यारह अंग नष्टप्राय हो गए। पोछे से दुष्काल का अंत होने पर विक्रम संवत् १५३ में स्थविर आर्य स्कंदिल ने मथुरा में जैन निग्रंथों की सभा एकत्र की। सभा में स्थविरकल्पी मधुमित्राचार्य तथा आर्य गंधहस्ती (१) प्राचीन जैन ग्रंथकार अाजकल की 'मथुरा' को उत्तर मथुरा कहते थे और दक्षिण देश की आधुनिक 'मदुरा' को दक्षिण मथुरा। For Private And Personal Use Only
SR No.020391
Book TitleJain Kalganana Vishayak Tisri Prachin Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherKalyanvijay
Publication Year
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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