________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अवश्य कर लिया । तदनन्तर उन दोनों साधुओं ने उन चारों ही गोपालकों को सब से श्रेष्ठ अहिंसा परमोधर्मः और दान के महात्म्य का दिग्दर्शन कराया ।
मुनि लोग वहां से विहार कर आगे दूसरे नगर को गये और यो धर्मोपदेश देते हुए अपना कालक्षप करते रहे। इधर वे चारी ही गोपालक दया और दान पर विशेष लक्ष देते हुए समय व्यतीत कर रहे थे । ये छःओं व्यक्ति अपना २ आयुष्य पुण्यानुसार भव करते करते जो कि आगे कहेगे, इस के अगले भव में एक ही स्वर्ग के ही " नलनी गुल्म" नाम के विमान में जन्म ले देवता हुए। वहां उन छःओं में से एक देव अपना आयुष्य पूर्ण कर ईचुकार नामकी नगरी में ईक्षुकार नाम का राजा हुआ। दूसरा देव वहां से मर कर इसी राजा के कमलावती नाम की रानी बनी । तीसरा देव इसी नगरी में भृगु ' नाम का राज्य पुरोहित हुा । और चौथा देव इसी पुरोहित की पत्नी ' यशा' हुई । शेष दो देव उस स्वर्ग के विमान में सुख मय समय बिता रहे थे।
भृगु पुरोहित धन, सम्पति से परिपूर्ण और सब ही तरह के सुखों से अपना जीवन व्यतीत करते थे । स्त्री श्राज्ञाकारीणी और सुन्दरता में मनोहारिणी थी। नौकर चाकर आदि की कोई कमी न थी। सब सुखों से भरपूर होने पर भी संतान सुख का अभाव था। बस इसी दुःख की चिन्ता राक्षसी रात दिन सताये रहती थी। पुत्र कामना चित्त को व्याकुल किये डालती थी। खाते, पीते, सोते, जागते; उठते, बैठते यही चिन्ता चित्त पर चढी रहती थी। इससे प्राधिक दुःख भृगु पुरोहित की पत्नी को संतान न होने का था । सच है दुःख होना ही चाहिये क्योंकि
For Private And Personal Use Only