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( ३ ) मुंह पर मुँह पत्ति, हाथमें पात्र, कुक्षि में रजोहरण, नंगे नंगे पैर, नियमित श्वेत कपड़े धारण किये हुए थे जा रहे थे। रास्ते में जन साधु जनों को अत्यन्त प्यास लगी । पर उन के पास पीने को पानी नहीं था और न वे कुप्रा , तालाब, नदी आदिका पानी पी सक्ने; इस से उनका कराठ शुष्क होता जा रहा था, अधिक प्यास के सताने से वे बोल न सक्ने थे और न चल सक्ते थे। कुछ आगे चलते चलते मूञ्छित हो एक पेड़ के नीचे गिर पड़े। कुछ समय के बीतने पर चार गोपालक (ग्वालिये) गौ, भैसों को चराते हुए वहां श्रा निकले । उन्हों ने उन साधुओं को मूर्च्छित अवस्था में पड़े हुए देख कर विचार किया कि, ये श्वास तो कुछ २ ले रहे हैं पर मत्यु के तुल्य क्यों पड़े हुए हैं ? निदान इनको किसी एक दुख से पीड़ित हो मूच्छी आगई है, इस लिये इनको सावधान करने के लिये अपने पास में तक मिश्रित जल भरा हुआ है उसे इनके मुँह पर छिड़के" । निदान उन्हों ने ऐसा ही किया और वे दोनों साधु कुछ सावचेत हुए। तब उन्हों ने ग्वालियों को ऐसा करने से मना किया कि, "ऐसा मत करो। हमारा कल्प नहीं, हमको प्यास बहुत जोर से लग रही है यदि तुम्हारे पास तक वंगरः कुछ हो तो हमे थोड़ा दे दो जिसे हम पी कर चित को शान्त्वना करें" यह सुन कर उन ग्वालियोंने कहा कि-" हाँ हमारे पास तक मिश्रित जल भरा हुआ है आप कृपा कर ग्रहण कीजिये" । उन चारों ही ग्वालियों ने उच्च भाव से उन्हें जल का दान दिया पर उनमें से दो ग्वालियों के दिल में फिर से कुछ कपटता था गई जिससे उन दो ग्वालियों के स्त्रीत्व वेद का बन्धन पड गया जिससे एक तो कमलावती रानी और दूसरा यशा स्त्री हुई, पर चारोही ने दान देते समय पडत संसार
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