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(1) गही ॥१॥ नाम अजय तस आजड थयो, पांच वरषनो नणवा गयो ॥ कहे लोक न बापो जदा, पूबी माय पाटण गयो तदा ॥ १७ ॥ प्रगट्युं धन ते धरती मांहे, लालदे स्त्री परण्यो त्यांहे ॥ कोटि ध्वज अनुकरमें थाय, त्रण्य पुत्र ते नारी जाय ॥२॥ जूंमे करमें निर्धन थाय, पुत्र लेई स्त्री पियरें जाय ॥ पोतें एकलो घरमा वसे, अकिक चर्मनी कोथली घसे ॥१॥ जव माणुं ते आपे एक, पोतें दलतां गयो विवेक ॥ पोतें रांधे पोतें जमे, दरिछ तणा दाडा निर्गमे ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥ ४ ॥
॥दोहा॥ ॥ दण खांको क्षण वाटलो, कण लांबो क्षण लीह ॥ दैवें न दीधा चंदने, सवे सरीखा दीह ॥१॥ जग शिर अकर विधि लिखे, विधि शिर लखिया केण ॥ रावण घर कोऽव दले, एम पूज्युं हणुएण ॥२॥ नलिनी सरोवर घर कियो, दव दाऊणा नए, ण ॥ ते दाधी हिमाजलें, पूरवदत्त फलेण ॥३॥ ना कीधे ते नवि रहे, दैव करे ते थाय॥ मल रयणायर घर करे, सांके साथ वेचाय ॥४॥ अवली गति जे दैवनी, रखे पतीजो कोई ॥ आरंच्या यूंही रहे,
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