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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( GI) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुपो सुजाण ॥ १० ॥ धन खोये दिलगिर नवि थाय, शी लखमी सूजते उपाय || उद्यमवंतनी ल खमी दास, धर्म करे मन एह विमास ॥ ११ ॥ तरु काप्यो वली या बतो, चंद खीण थई वाघतो ॥ श्रा पद संपद चाली जाय, सरखो रहे नर बेहु वाय ॥ ॥ १२ ॥ होय आपदा मोटा तणे, शूर शशीनी ल खमी हणे ॥ चादरणी सरखी ते सदा, दारिद्रीनें शी आपदा ॥ १३ ॥ ( मूरखने चिंता शी होय, पटु ते पुरुष निचिंत न होय ॥ ) त्र्यंब वृक्ष तरुवरमांहि सार, चिंतातुर दीठो एक वार ॥ पूबे पंक्ति कां मणा, फाल्गुन मास लिया गुण घणा ॥ १४ ॥ कहे पंमित चैतर वैशाख, त्यारें फल होशे तुक लाख ॥ पत्र पंचवर्ण होये तदा, तुं पामीश सबली संपदा ॥ ॥ १५ ॥ सुणो कथा गरढा नर बाल, पाटणमांहे वसे श्रीमाल ॥ नागराज शेठ तिहां रहे, कोटिध्वज तस सहुको कहे ॥ १६ ॥ मेला देवी तस घरनार, गर्भवती होई जिए वार ॥ नागराजा तव पाम्यो मरण, राजायें धन कीधुं हरण ॥ १७ ॥ गई धोलके पीयर जणी, मोहलो उपन्यो तातें सुणी ॥ मा री पडह वजडाव्यो सही, पुत्र जयो तव मन गह For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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