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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) ॥४॥ कहे मुऊ होजो पुण्यने काम, वैर न बांधे तेणें गम ॥ नावड शेग्नी सुणो कथाय, ऋषन कहे तुम हितशिदाय ॥ ५॥ सर्वगाथा ॥ १५ ॥ ॥ ढाल ॥ बानो रे बूपीने कंता किहां रह्यो रे ॥ ॥ए देशी॥ ॥ शेठ जावड वडो वाणियो रे, तुंठं सुपन लहे नार रे ॥ रणसंबंधे सुत उपन्यो रे, जाण्यो मृतयोगें विचार रे ॥ शेठ जावड वडो वाणियो रे ॥१॥ए आंकणी ॥ मालण नदी तटें जश् करी रे, मूक्यो शूके जाड रे ॥प्रथम रोयो पर्नु बहु हस्यो रे, बोल्यो ज डबु जाड रे ॥ शेण ॥ ॥ बालक रोयो तेणें कार णे रे, मारे लाख टकाय रे ॥ ले। अटवीमांहे मू कियो रे, तात मूरख कांय थाय रे ॥शे ॥३॥ बाल हस्यो तेणें कारणे रे, नहिं द्यो टका लाख रे ॥ तुम घरे लुसु बहु हशे रे, जाणो साची नांख रे॥शे॥४॥ पाठो ले घर आवियो रे, खरच्यु लाख सुवर्ण रे ॥ जनम महोछव करे तिहां घणो रे, बळे दिवसें पाम्यो मर्ण रे॥शे॥५॥ बीजो पुत्र तिहां जनमीयो रे, त्रण्य लाख देवा तातें रे ॥ मूक्यो रण तव बोलियो रे, लाव्या घरे संघातें रे॥शे॥६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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