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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८३ ) ॥ ७ ॥ कदाचित् हुइ धननी हाणि, थोडं थोडं दिये निर्वाण ॥ श्र जव परजव जे दुःख देह, कोण मूर खरण राखे तेह ॥ ८ ॥ धनयागमनें शत्रुघात, निरोगनो करो निपात ॥ कन्या दान नें र बेदवुं, विलंब न करवो शीघ्रज थतुं ॥ ५ ॥ सर्व गाथा ॥ १०५ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ पुत्री मरण र बेद, विद्या उषध धर्म ॥ रुष कहे दुःख ते नथी, पढें दिये सुख पर्म ॥ १ ॥ कुपथ्य परिग्रह श्वान मिथुन, पाप करज ने घाय ॥ रण करतां बे सोहेलुं, निर्वदेतां दुःख थाय ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ जो नवि पामे देवा दाम, तो तेहना घरनुं करे काम ॥ करे बूटया तणो उपाय, नहिंकर परजवें दुःखियो थाय ॥ १ ॥ सो उंट गधेडो दास, थाय बलदियो आणे घास ॥ खांधे धोंसरुं खमतो मार, करडे पूडुं धरतो खार ॥ २ ॥ वींधी नाक परोई राशि, किहां जाईश रे रशिया नाशि ॥ चूके आर पेसारे घणुं, कारण ते सहु देवा तनुं ॥ ३ ॥ बेदे लदार विमासे इस्युं, जे कई देवा नहिं धन किस्युं ॥ उत्तम ते कंइ मागे नहिं, पाप बांधतुं जाणे तहिं ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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