SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५) त्रण्य लाख टका खरचिया रे, ब दिने थयुं मरण रे॥त्रीजुं वपन ले जण्यो रे, देहनो कंचन वर्ण रे ॥ शेण ॥ ७ ॥ तेहने मांमयो वन मूकवा रे, बो त्यो मुखथी नांख रे॥ मुजने कांश तजो तातजी रे, देवा उंगणीश लाख रे ॥ शे० ॥ ॥ सुणिय वचन सुतने ग्रह्यो रे, दीधुं जावड नाम रे ॥ अनुक्रमें ते यौवन लहे रे, बहु वाध्या गुणग्राम रे ॥ शे०॥ ॥ ए ॥ मात पिता परजव जतां रे, उंगणीश लाख टकाय रे ॥ मान्या तेणें तिहां खरचवा रे, जरावी त्रण्य प्रतिमाय रे ॥शे ॥ १० ॥ षन अने पुंग रीकनी रे, चकेसरी संतुष्ट रे ॥ नव लाख टका तेह ने दिया रे, दश लाखें कीधी प्रतिष्ठ रे ॥शे० ॥ ॥ ११॥ अढार वाहाण धन लावियो रे, सोनुं श्र संख्य अपार रे॥शत्रुजय उकार करावियो रे, मणि मय बिंब सुसार रे ॥ शेण ॥ १२ ॥ एम रण बूटी उरण थयो रे, कीधां पुण्य अनेक रे ॥षन कहे देणुं नवि गमे रे, जेहने पोतें विवेक रे॥ शेण ॥१३॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी॥ ॥ कलेश वयर वाधे रणथकी, या नव परजव थाये छुःखी ॥ तेमाटें आ नव दीजीयें, उधारे श्याने For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy