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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७६) थाशे एतो श्राजश्री, गलियामांहि घेरी रे॥नेद॥१२॥ नीखें न होय व्यवहारीयो, पेट कबीय नराय रे॥ व णज करंतां धन मिले, जलो एह उपाय रे ॥नेद ॥ १३ ॥ कमला कमलज वासिनी, कृमने हश्ये वा स रे ॥ शोधंतां सोय जो नवि जडे, जडे वणज तिहां खास रे ॥ नेद ॥ १४ ॥ मानव धन देशका लने, जाग्यने अनुजाय रे ॥ वणज करे माह्या वली, सुखिया ते बहु थाय रे ॥ नेद० ॥१५॥ पन्नरे कर्मा दाननो, करे नहिंज व्यापार रे ॥ नियमनी वस्तु वहो रे सही, सूत्र वणज ते सार रे॥नेद०॥१६॥ रजतने हेम नाणां लिये, एवा जेह व्यापार रे ॥ पुरुष धर्मी तेही आदरे, जिहां नहिं पाप लगार रे ॥ नेद ॥ ॥ २७ ॥ मुनिक काल होये जदा, गमे ते करे वणज रे॥तेल मी तिल वेचतो, नीलां शाक ने कणज रे ॥ नेद ॥ १७ ॥ पुरुष कुवणिजने जो करे, लाज बीक धरंत रे ॥ ससुग थई निज निंदतो, मति साधु करंत रे ॥नेद ॥रणा झषन दिये हित शीखडी, रहे जो मन गम रे ॥ वाणिज नृहुं तुम म म करो, करो पाप कोण काम रे ॥नेद ॥२०॥ सर्व गाथा ॥ ६॥५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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