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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७५) रे॥ वस्तु लहियें श्रण उद्यमें, नित्य नवि अचिरा म रे ॥ नेद ॥३॥ गृहस्थने नीख नूंमी कही, ल जातणुं ते हेत रे ॥ ज्ञान क्रिया गुण तेहना, गयां ते रण खेत रे ॥ नेद० ॥४॥ तिहां लगें रूप ने कुल नबुं, विनय लक्षण जेय रे ॥ तप समता स्तुति तिहां लगें, नथी कडं जब देय रे ॥ नेद ॥ ५ ॥ दे कहेतां गुण पंच जे, तनथी नाशी जाय रे॥बुद्धि संतोष कीर्ति गश्, लाज गश् शोलाय रे ॥ नेद ॥६॥ सर्वथी हलवू तृणखलुं, तेहथी आकतूल रे ॥ याचक हलवो तेहथी, सदा जे अनुकूल रे ॥ नेद ॥ ७॥ वाय न उमाडे तेहथी, रखे याचतो मोय रे॥मरण देवु बे सारि, तेणें नासतो सोय रे ॥ नेद ॥ ॥ रोगी परदेशे नमे, पर अन्ननुं शरण रे ॥ परवशे वसतो जे वली, चारे जीवता मरण रे ॥ नेद ॥ ए ॥ जीख मागी नर जे जमे, घणो तेहने आहार रे ॥ बहुध निझा ने आलसु, दारिज अपार रे ॥ नेद० ॥ १० ॥ जीखारीनापा त्रमां, घाले बल दियो मुख रे ॥ बूंब पाडे हाय हाय करे,मुऊ ए घणुं उःख रे ॥ नेद ॥१९॥ नीख जड शे मुजने घणी, घांची बेल शी पेरें रे॥ अकजा For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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