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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७७) ॥ डाल ॥ गुरु गीतारथ मारग ॥ ए देशी ॥ ॥ वणिज कुवणिज न कीजें रे नाई, लबी न्याय मेलीजें ॥ हाड चरम दुपद ने चौपद, इस्या वणज नवि कीजें रे पुरुषा, मेलो हितशिदा सारी॥गामां लोहन विष वेचतां, दीधी मुक्तिनें बारी रे ॥ पुरुषा सु० ॥ ए आंकणी ॥१॥ वणिज व्यवहार करीजें रूडो, जिहां नहिं सबलज कूडो॥ मदिरा मंस मधमाखण वेची, पुरुष पाताले बडो ॥ पुरुषा० ॥२॥ वणज व्यापार माह्यो रे जोश्यें, उलखे सहु करियाणां ॥ सघली नाषा बोली जाणे, परखे संघ लां नाणां रे ॥ पुरुषा ॥३॥ हस्तसंज्ञा समजे रे सघली, करपल्लवी पण जाणे ॥ नेत्रपदवी जे नर समजे, वणज करी धन ताणे रे ॥ पुरुषा० ॥ ४ ॥ विण दी सतकार न दीजें, दीजें बहु देखतां ॥ मित्र संघातें वणज न कीजें, शास्त्रे वरज्या एता रे॥ पुरु षा ॥ ५॥ शस्त्रधारीशु वणज न कीजें, परिहर बांजण नाटो ॥ व्यलिंगीशुं काम म पाडिश, ए नहिं वणजनी वाटो रे ॥ पुरुषा ॥ ६॥ नट विट वेश्या ना जूवटिया, म करिश त्यां उधारो ॥ धर्म पोतानो नवि हेलाये, तेह वणज कर सारो रे ॥ पु For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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