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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६६) ॥ चोपानी देशी ॥ ॥ मूरखपणुं सहि तेहy टले, जे पंमितने पासें मले ॥ आगमवेदी नेद ते कहे, नीति शास्त्रनो मर म ते लहे ॥१॥ नीति शास्त्रे बोल्युं पवित्र, पुरुष धरे शिर उपर बत्र ॥ जल तडको नवि लागे वाय, शोना तणुं वली कारण थाय ॥२॥ पुरुषे दंग धरे वो हाथ, जाणुं मित्र मल्यो संघात ॥ श्रम कामें जय वारे तेह, हीमंता सुख आपे देह ॥३॥वांको दंम न आवे काम, पहोलो परिहरवो तेणें गम ॥ शल्यो खंम दह्यो शुं कीजियें, हाथे दंम ते नवि ली जियें ॥४॥एक गवं। लाठी ते सार, करे बे गंठी वे ढ अपार ॥ लाल त्रिगंठी आपे अति, चार गंठी श रणे राखती॥५॥पंच गंठी लाठी नय हरे, षटगंठी जय उन्नो करे ॥ जे लाठीने गंगी सात, ग्रहतां रोग रहित दिन जात ॥६॥श्राप गंठी लाठी धन देह, नव गंठीथी जस वाधेह ॥ दश गंठीथी सीके काज, एकादश गंठीयें राज ॥ ७॥ अंगुल चार धुरि मूकी करी, कापि लीये लाठी वन फरी॥ आंगुल श्राप पर वृशिवती, वनशूकी लाठी गुणवती ॥७॥ अस्यो दंग करमांहे धरे, राजा राजनवनें संचरे ॥ मंत्रीशर For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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