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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६७ ) मां वियें जाय, धन मेल्यानो करे उपाय ॥ ए ॥ वाणिक पुत्र वखारें जई, वणज करे पोतानो सही ॥ केता हाटें करे व्यापार, व्यवहार शुद्धिथी रुद्धि अपार ॥ १० ॥ सर्वगाथा ॥ २७६ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ द्धि घणी तस मंदिरें, न करे कर अन्याय ॥ राजजवनें बेसी करी, रुद्धि मेले राजाय ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ ते गिरुया नाई ते गिरुया ॥ ए देशी ॥ राजा राजसजायें बेसे, मांगवियें मंत्री शो रे ॥ वाणि हाट बेशी धन मेले, धर्म न दुःखे लेशो रे ॥ ते नर महोटा ते नर महोटा, न्याय न करता खोटा रे ॥ ते नर० ॥ ए आंकणी || १ || धर्म विरुद्ध करे नहिं राजा, मध्यस्थपणे करे न्यायो रे | दारिद्री व्यवहा री उपरें, दृष्टि सरिखी रायो रे ॥ ते नर० ॥ २ ॥ कल्याण कटकपुर केरो स्वामी, नाम यशोब्रह्म रा यो रे || नीतिघंट बांध्यो तेणें बहारें, करतो निरतो न्यायो रे || ते नर० ॥ ३ ॥ राजतणी जे अ धिष्ठायिका, परीक्षा कारण आवे रे ॥ थइ सवष्ठा गवरी रूपें राजमार्गे जावे रे || ते नर० ॥ ४ ॥ रा जपुत्र रथ खेडे वेगें, चांपे वचना पायो रे ॥ मूर्ज For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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