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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६५) णहि धरजे सारो, त्रूटो नहिंज लगारो॥हो पुरषा, त्रू टो० ॥ ए आंकणी ॥१॥ त्रूटी चांच ने नहिं वाध रडी, खरा गया उंदरडा करडी, तलां गयां तस तर डी॥ हो पु० ॥ तलां ॥२॥ पग अटके पहेरतां मू ल, अबिर पेरें जमाडे धूल, पग विधाये मूल ॥ हो पु० ॥ पग ॥३॥ दरिज पुरुष तणी एंधाणी, तज सुपुरुष तुं हित जाणी, करे पग तणी ते हाणी ॥ चो पु० ॥ करे ॥४॥ अजा चरम तणी ते जाली, .पग परमाणे अतिहि सुंआली, परिहर जेह धाराली ॥ हो पु० ॥ परि० ॥ ५ ॥ जीवघात जेणे करी था ये, मोजा सोय म पहेरिश पाये, कर जंतु रदाय॥हो पु०॥ कर ॥ ६॥ नलि वारण हो धरो सदाई, तिण पगने वली रोग न थाई, लोचनने हित दाई॥ हो पु० ॥ लोच॥७॥ (नीर अन्नने त्रीजां फल) वाणही वस्त्रने त्रीजां फूल, परनां फरस्यां न रहे मूल, म धरिश पुरुष अमूल ॥ हो पु० ॥ म ध॥ ॥७॥ ए हितशिदा झषन्ने नांखी, समज्या पुरुष श्रमण रह्या राखी, मूरख रह्या नर बाकी॥हो पु० मूर० ॥ ए॥ सर्व गाथा ॥ ५६६ ॥ हि० ५ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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