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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४१ ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेमशुं ए ॥ ३ ॥ जमणो पग घरमांहे मूके, उंबरो चांपे त्यां नवि यूंके, वदन पखाले प्रेमशुं ए ॥ ४ ॥ ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ मौनवंतने निश्चल वली, सजा करे तर्क नि यांगुली | पेढी दंत घसे नरराय, जिम बत्रीशे बलिया थाय ॥ १ ॥ पढें पुरुष ते दात करे, कज जी ल कायरनुं सिरे ॥ वडलो खेर बीयो मालती, निं बे रोग रहे नहिं रति ॥ २ ॥ वांकुं गांठ नहिं ज्यां वली, जाऊं स्युंज टची आंगुली ॥ द्वादश अंगुल दीरघ जाप, अनामिकाने टचि विच राख ॥ ३ ॥ जिमणे पासेंथी नर करे, पोलुं शकुं दुर्गंध परिहरे ॥ व्यतिपातने यादित्य वार, ग्रहणसमय नहिं दातण सार ॥ ४ ॥ श्रवम नोम ने चतुर्दशी, पडवे दातण म करिश घसी ॥ श्रमास पूनम ने संक्रांति, दंत न घसवा तव एकांत ॥ २ ॥ करे कोगला त्यारें बार, उलि तो कां नहिंज विचार ॥ कनक रजत तरु जैलें करे, वांकी कांटाली परिहरे ॥६॥ अंगुल दश नी ते राखतो, दातण करि आगल नाखतो ॥ पढे नाकमां नामे नीर, गजनी परें तस होय शरीर ॥७॥ मुख सुगंध ने नावे पली, इंद्रिय निर्मल तेहनां वली ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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