________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(४१)
सुहरा कहे, गश् सुख नरें राति ॥ तप संयमनी जा तरा, निर्वहो सुख नर जाति ॥१॥ झा ॥ शास्त्र मांहे कडं श्स्यु, गुरु साहामा जाई ॥ नमस्कार करी पूबतां, जीव हलुई थाई ॥ ११॥ ज्ञा० ॥ वांदतां विधिशुं साधुने, होय निर्मल आप॥चिरका लनुं संच्यु वली, शिथिल होवे पाप ॥ १२ ॥झा॥ विशेष वंदन कहुं तुऊ हवे, सुणि धरजे विवेक ॥ बकारि नगवन् पसा करी, कहे गाथा एक ॥१३॥ शाणायालावो॥"फासुएणं एसणिणं असणं पाणं खाश्मंसाश्मेणं वन पडिग्गह कंबल पाय पुणेणपाडि हारि पीढ फलग सिसा संथारएणं उसह नेसऊोणं जयवं अणुग्गहो कायवो ॥” एवं निमंत्रणुं नि त्य करे, वली नोतरं देय ॥ षन दिये हित शी खडी, समजे जेह सुणेय ॥ १४ ॥ झा० ॥ ३४ ॥ ॥ ढाल ॥ जिम सहकारें कोयल टहुके ॥ ए देशी॥
॥ निश्चल मन करि सुणवा आवे, नावें नेद न ला ते पावे, मूरख पणुं तस नीकले ए ॥१॥ चल टामांहेथी जारें आवे, क्षण एक बेसे जिहां मन नावे, वस्त्र पहें उतारिये ए॥२॥ घरणी जमणी शाखा पूजे, दरिऽपणुं जिम नरनुं भ्रूजे, पूजी उंबरो
For Private and Personal Use Only