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(४०) ॥ ढाल ॥ कायावाडी कारमी ॥ ए देशी ॥
॥ज्ञान लघु अति निर्मवं, न करे जे किरिया॥ ते संसारें पड्या रह्या, नवि दीसे सरिया ॥ १ ॥ झान लडं अति निर्मदुं ॥ए आंकणी॥जोगतणी वा तें वली, कां खाद न आवे ॥ जाणे तरी पण नवि तरे,ते तो सुमो जावे ॥॥झा॥ ज्ञान किस्युं चारि त्र विना, किरिया करे तो वारु ॥ शुकलपदी तेहने कहूं, नवि आतम तारु ॥ ३ ॥झा० ॥ समकित दृष्टि नावें वली, मिथ्यादृष्टि होय ॥ पण किरिया वा दी नरा, सिकि पामे सोय ॥४॥ झा० ॥ ज्ञानी तप किरिया करे, कर्मक्षय बहु गाले ॥अज्ञानी तप बहु करे, अल्प पुण्य ते आले ॥५॥झा ॥ ता मल पूरणनी परें, घणुं कष्टज एहनुं ॥ इंतणी प दवी लही, फल अलपज तेहy ॥६॥ ज्ञा॥ज्ञा नी सद्दहणा विना, तप किरिया करतो ॥ अंगारमई कनी पेरें, संसारमा फरतो ॥७॥झा ॥ झान स, मकित चारित्र नला, त्रणे मोदज होय ॥ जेम सं योगी रोटली, वली थाती जोय ॥ ॥ झा० ॥ गुरुवाणी सुणी श्रादरे, एत्रणे प्रकार ॥ श्रावक पूजे वांदतां, कहुँ तेह प्रकार ॥ ए ॥ झा ॥ श्छकारी
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