________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
(३६) केशी तुम अवतार ॥ माहामिथ्यात्वी पापें नस्यो, स मजावीने श्रावक कस्यो ॥४॥ परदेशी संवरी थयो जिस्ये, सूरिकता लंपट अ तिस्ये ॥ सुतने कहे मा रीले राज, सुत बोल्यो नहिं महारं काज ॥५॥ एक दिवसें पोषधवत धरे, वाहाणे पारणुं राजा क रे॥ सूरिकता लंपट नार, विष नेव्यु नरने तिणे गर ॥६॥ धर्मतणो नृप समजे मर्म, कहे ए मुफ पोतानां कमे ॥ तजी क्रोधन अणसण करे,सुरियान देव दुळ ते शिरें ॥ ७॥ सूरिकता तो सर मशी, जश्नरकमांहि ततदण वसी॥षन कहे नृप सुर गति थाय, तेतो शास्त्र तणो महिमाय ॥ ७॥ मूर ख धर्मकथा नवि कहे, कालनाव खेतर नवि लहे॥ अव्य तणा नवि समजे नाव, जिम श्रणसमजू बो ले शाव ॥ ए ॥ उत्सर्ग पंथ न जाणे रति, जे अप वाद न समजे यति ॥ उदो अधिको मुखथी नखे, शुरु उपदेश देई नवि शके ॥१॥ गुरु कहे शिष्य सांजलजे सोय, मूरख केम जतनावंत होय ॥ अगी तारथ पासें रही बाल, किस्युं चलावे गठ वृक्ष बा ल ॥ ११॥ तथा सूत्रमांहे नांख्युं एह, प्रायडित पाखें प्रायछित देह ॥प्रायछित अतिमात्रायें दिये,तो
For Private and Personal Use Only