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(३७) आशातन महोटी लिये ॥१॥ आशातन करतां मि थ्यात, आशातना करे समकित घात ॥ आशातना करतां अपार, तव वाधे दीरघ संसार ॥१३॥ एहवा अगीतारथने दोष,नेष्टायें रह्या पातक पोष॥गीता रथ गठ मूढने देह, एहवा दोष तेहने लागेह ॥१४॥ अबहुश्रुत तपस्वी हुवे जेह, पंथ अजाणे विचरे ते ह॥ते अपराधना सहि बंध करे, करतो नवि जा णे नवि तरे ॥ १५ ॥ अल्प आगमनो जाण नहु तरे, कलेश लहे जो बहु तप करे॥सुंदर बुधि जा णी करे सोय, परमार्थे सखलं नवि होय ॥ १६ ॥ श्रुतनुं रहस्य न लहे संसार, चाले केवल सूत्र अनु सार॥श्रुत उद्यम तस हाथे नवि जडे, तप अज्ञान विषे सह पडे ॥१७॥ पंखी पंथ देखाडे रेख, पण पंथनो नवि लह्यो विशेष ॥ ते पंथी नवि थाये सु खी, तिम मुनि एकले सूत्रं कुःखी ॥१७॥ ३१५ ॥
॥दोहा॥ ॥ सूत्रनेद समके नहिं, चरित्र तणो नहिं जाण॥ अवसर सजा न उलखे, ते \ करे वखाण ॥१॥ योग्य अयोग्य जाणे नहिं, जिम तिम दिये उपदेश ॥ पंखिणी सुघरीनी परें, पामे तेह कलेश ॥ ५ ॥
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