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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५५) वर गोचरी॥१॥ तेहज व्यवहारी ने घेर, जातां लजा थ बहु पेर ॥ बारीनी वाटें ते जाय, बत्रीश लाडु लहे मुनिराय ॥२॥ निमित्त विचारे गुरुजी तिस्य, बत्रीश पाट महारा चालशे ॥ श्स्युं विचारी तातने त्यांहि, सबल प्रशंस्यो मुनिवरमांहि ॥३॥ साधुपंथ पाले सहु तजी, एक धोतियु राख्युं हजी॥ एक दिन एक मुनिवर करे काल, परग्ववा चाव्या ततकाल | गुरु कहे साधु तणुं ए शरीर, पररवि आवे मुनिवर धीर ॥ तेहना लान तणो नहिं पार, उठयो तात तव सुणी विचार ॥ ५॥ सोमदेवने गुरु त्यां कहे, मनह तुमारं गमें नवि रहे॥ देव दा नव जद बलशे जदा, शब नाखीने बेसो तदा ॥६॥ सोमदेव कहे नाखुं नहिं, वेगें शब उपाड्युं तहिं ॥ त्यारे गुरु शिष्यने शीखवे, काढो धोतीयुं ताणी हवे॥ ॥७॥ ताणी धोती चेलो लावियो, सखर चलोटो पहेरावीयो ॥ शरीर परठवी आव्यो जिस्ये, तातें ठबको दीधो तिस्य ॥ ॥ वारे गुरु शिष्य न लहे किस्युं, पहेरो धोतियुं जो मन वस्युं ॥ सोमदेव कहे शी हवे धोती, जेहनी मुनिवर करता येती ॥ए॥ प्रतिबोधी कीधो जल यति, जेहने पाप न लागे For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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