________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१५४) मुखें कही, सोमदेवने दीदा सही ॥ शिष्य सघला ने एम शीखवे, कोइ म वांदश्यो तातने हवे ॥१६॥ एक एकने वंदन करे, सोमदेवथी पागा फरे ॥ तव खीजीने जांखे श्स्युं, वड लोढाई नहिं तुम किस्युं॥ ॥ १७ ॥ मुनिवर कहे नहिं वांडं अमो, त्रादिक केम राखो तुमो ॥ संघलां वानां मे तहिं, पण गोचरीयें जाये नहिं ॥१७॥ गाम गया गुरु शिष्यने कही, तातने आहार म देजो सही ॥ श्राणे वस्तु मुनि बेगे जोय, सोमदेवने न दिये कोय ॥१५॥ एक बहमन पाखे होय, पढें गुरु मुनि श्राव्या सहु कोय ॥ तातें राव करी त्यां जिस्यें, चेला उपर खीजे तिस्यें ॥॥ गुरु कोली घाली सङ थाय, लाजी बोल्यो गुरु पिताय ॥ हुँ पोतें जाइश गोचरी,चाल्यो आहार दाय त फर। ॥२१॥ सर्व गाथा ॥ १३०५॥
॥दोहा॥ ॥मुनिवर करतो गोचरी,मधुकरनी परें आहार॥ सार करे संयम तणी, खरचरी करे खूधार ॥१॥
॥ ढाल ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ एक व्यवहारीने घर गयो, खेश लाडने ते श्रा वीयो ॥ वहेंची दीधा मुनिने फरी, वली चाल्यो मुनि
For Private and Personal Use Only