SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५३) श्रावक परें करी, लखी गुरु बोलावे फरी ॥७॥ कुमर कहे चउद पूरव जेह,मया करीने नणावो तेह॥ तोसलीपुत्र कहे सुणो कुमार, संयमविण नहिं पूरव सार ॥ ७॥ लीधी दीक्षा बंमयुं सहु, श्रुतसिद्धांत जणाव्यो बहु ॥ गुरु कहे पूरवनो खप करो, वयर खामी चरणे अनुसरो ॥ ए॥ गुरुवचने त्यांहांथी चालियो, उडोणीमांदे श्रावियो ॥ जगुप्त श्राचा रय जिस्ये, आर्यरहित निजामे तिस्ये ॥१०॥ शीख दीये आचारिय सही, वयरस्वामीथी अलगो रही॥ जणजे पूरव तुं गहगही, सुणी वचन चाख्यो ते वही ॥११॥ वयरखामी अवंतीमांहि, वादी नणवा लाग्यो त्यहि । पूर्व साडा नव नणियो जिस्ये, आर्यरक्षित मुनि थाको तिस्ये ॥१२ ॥ फदगुरक्षित जाई जेह, श्राव्यो शोधवा वेगें तेह ॥प्रतिबोधी तस दीदा देह, बिहुँ दसपुर नगरें आवेह ॥१३॥ नूपति बहु सामश्युं करे,नगरमांहि मुनिवर संचरे॥ कुटुंब सकल वांदे गहगही, प्रतिबोधी दीये संयम सही ॥ १४ ॥ पिता न बजे तेणें गम, धोती विण न नमुं परगाम ॥ जनोश बत्र अनेज उपान, हाथ कमंगल ते शुजवान ॥ १५ ॥ अतिशयवंत गुरु For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy