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(१५५) क आलोए सोय के ॥ गौतम पूढे रे वीरजी, शिष्य उशिंगण होय के ॥ गौ०॥५॥ शिष्य उशिंगण ए थयो, नांखे वीर जिणंद के ॥ षन कहे हितशी खडी, मुणजो श्रावकवृंद के ॥ गौ ॥६॥ १२ ॥
॥ ढाल ॥ चोपानी देशी ॥ ॥ वीर कहे श्रावक आदरो, मात पितानी नक्ति ज करो ॥ धर्म पमाडो धर्मी धूरे, आर्यरहित सूरि नी परें ॥ १॥ दशपुर नगर अनोपम कहे, पुरोहित सोमदेव त्यां रहे ॥ सोमरुजा नारी जेहने, धारिय रक्षित सुत तेहने ॥२॥ चउद विद्या नणी श्राव्यो जिस्ये, खूशी माय न हुई तिस्यें ॥ पूढे पुत्र नहिं हर्ष थपार, माय कहे सुण पुत्र सुसार ॥३॥ पूरव चउद जणो तो जब, पातक रूपियां काढो शव ॥ पुत्र कहे ते पामुं क्यांहीं, माय कहे मुक मामो ज्यांहिं ॥४॥ तोसलीपुत्र जणी ते चल्यो, साढी नव शेलडी लश्मव्यो॥ विप्रकुमरने दिये तसु गय, कुमर मोकले जिहां निज माय॥५॥देखी शेलडी कस्यो विचार, पूर्व साडा नव जणे कुमार ॥ कुमर गयो तव गुरुनी संग,उपाशरामांपेगेरंग॥६॥दृढ श्राव कने पूवें गयो, शीखी वांदे त्यां गह गह्यो॥सघली विधि
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