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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४०) तोले ॥राणा ॥ मर्दन करे कर साही उगडे, वचन कडं ते नोमि न पाडे ॥ वचन प्रमाण करेवा काम, प्रमाण देशोटो कीधो रे राम ॥ गुण ॥ ३ ॥ सुणी अ वचन मन आनंद धरतो, चित्त न बेसे तोही पण करतो॥ सखर सेवा करे गुरुने पितानी, रहस्य प्रका शे वात जे बानी ॥ गुण ॥४॥ थोडं नण्यो करे वृछनी सेवा, ते होय बुधि लोकोने देवा ॥ जेह q लहे गरढो को एको, तरुण कोडिमांही नहिंज विवेको ॥ गुण ॥५॥ उक्त पूब्युं नृप पाटु मारे, कवण दंम देवो तस त्यारें ॥ तरुण कहे मारेवो तेहने, नृप नि मनमांहि एहने ॥ गुण ॥६॥ गरढो कहे तस पूजा कीजें, वस्त्र पहेरावीने नूषण दीजें ॥ नरपति हरख्यो तेणी वारो, पूजी बाल पहे राव्यो रे हारो ॥ गुण ॥ ७॥ तेणें कारणे नर माह्यो जेहो, वृद्धवचन माने सहु तेहो ॥ एक हंस सुत एकशो आगे, चुनि करवाने लीये जव वाटो॥ गुण ॥ ७॥ साथे बाप गमे नहिं गरढो, तरुणा पूवें श्यो ए जरठो, वात कहे सुणो पुत्र गमारो ॥ कबि एक गरढो करे तुम सारो ॥ गुण ॥ ए॥ एक दिन सघला पाशमाहे पडता, पूजे तातने हंसा For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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