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(१३ए) सोवतें, दिवस गमायो खाय ॥ हीरा जिस्यो मनुश्र जव,कोडी बदलें जाय ॥७॥ सर्वगाथा ॥ १९७० ॥
- ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥ एजें जनम खोयो नर तेह, व्रत अंगें नवि धरता जेह ॥ नियमधरा जगमें पूजाय, वली परलो के सुखीया थाय ॥१॥ धरी नियमने समकित धरे, उचित जालव तुं बहुपरें॥ उक्ति सुणो म म होजो बाल, एणी परें बोले उपदेशमाल ॥२॥ पामे लो कमांहि कीर्ति तेह, उचित कस्यानो महिमा एह॥ पिता माता नाइ स्त्रीतj, उचित साचवे सुतर्नु घणुं ॥३॥ सऊन गुरु पोतानी नात, परतीर्थी नांख्या बहु नांत ॥ उचित एहना जे साचवे, रुपन कवि गुण तेहना स्तवे॥४॥ सर्वगाथा ॥११॥
॥ ढाल ॥ सोय अनाथी परनवे होय ॥
॥अथवा ॥ जं सुरसंघा॥ ए देशी ॥ ॥ गुण तेहना नर सहुको रे गाय, जेह पिता ना पूजे रे पाय ॥ उचित पितानुं त्रणे प्रकारें, मन ह वचन काया करी गरे ॥ गुण ॥ १॥ शरीर त णी शुश्रूषा करतो,सेवक परें बोल शिर पर धरतो॥ पाय धोवे नवि सामुं बोले, सोय पुत्र कह्यो षनने
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