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________________ www.kobatirth.org ( १४१ ) रे रडता ॥ तात कड़े अचेतन थाजो, काढी नाखे तव ऊडी रे जाजो ॥ गुण० ॥ १० ॥ काढे पारधी पाखें रे जाले, संध्या श्वास नवि हाले ने चाले ॥ जाणी मुखा तस दूर नखावे, मली एकता सढु उडी रे जावे ॥ गुण० ॥ ११ ॥ पुत्र पिताना गुण बहु गावे, तात पसायें जीवता रे जावे ॥ रुषन कहे गरढानी रे माने, ते हनी कीर्त्ति नवि माये रे पाने ॥ ० ॥ १२ ॥ सर्वगाथा ॥ ११६ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पानामां कीर्त्ति नवि माय, जे नर माने मात पिताय ॥ ते सुख पामे जगमांहि सार, श्रेणियथी जिम अजय कुमार ॥ १ ॥ मात पितानें कहे गढ़ गढ़ी, तमो जिनवरने पूजो सही ॥ गुरुसेवा पडिक्कम करो, सात खेतरें धन वावरो ॥ २ ॥ दीन उद्धार तीरथनी जात्र, पुण्यें पोषो महोटां पात्र ॥ सकल मनोरथ पूरा करो, इस्युं कहे उत्तम दी करो ॥ ३ ॥ शास्त्रमां कयुं बे नेट, मात पिता गुरु सूधो शेठ ॥ जिननो धर्म करावे जोय, तेह पुरुष शिंगण होय ॥ ४ ॥ ते उपर बे युगतिय घणी, कहुं त्रिनंगी ठाणांग ती ॥ त्रणनो शिंगण नवि For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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