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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३०) यर्नु जी, तेहथी पाप अनिमान ॥षन कहे रांका परें जी, सुणजो जसु शिर कान ॥ सो० ॥ २० ॥११७ ॥ ॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी ॥ ॥सुणजो सुपुरुष जस शिर कान, रांके मेव्युं पा पनिधान ॥ घणा तस्या करी अन्याय, करी पाप पुर्गतिमां जाय ॥१॥ तेणें कारण नर माद्यो जेह, अकर अन्याय करे नहिं तेह ॥ देश विरुद्ध टालतो सुजाण, नवि खंभे राजानी श्राण ॥॥ लोकविरु कनर तुं टालजे, काल विरुद्धश्री अलगो थजे ॥ धर्म विरुक करो म म कदा,जैनधर्म आराधो सदा ॥३॥ दान शील अने तप नाव, आराधो नर मन ने नाव ॥ धर्म तणा कह्या चार प्रकार, नाव जलो तो पुण्य प्रकार ॥४॥ सर्वगाथा ॥ ११०६ ॥ ॥ ढाल ॥ कायावाडी कारमी ॥ ए देशी॥ ॥ नाव नलो तो पुण्य घj, सुणी एक कथाय ॥ नगर विशाला मांही वली, वीर विहरता जाय॥नाव जलो तो पुण्य घणुं ॥ ए आंकणी ॥१॥ प्रतिमा धर उन्ना रह्या, तप तिहां चउमासी॥जीरण शेष निमंत्र j, करी जाये प्रकाशी ॥ ना०॥॥ अति घणी नावे नावना, धन्य हुं जग माही ॥ चार मास, पारj, For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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