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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२५) पात्रदान जगमां वडूं जी, टाले चगति फंद सोग ॥११॥ जिम खड देतां आपती जी, दूध सकोमल गाय ॥ दूध पड्युं मुख सापनें जी, ते विष विरुवं थाय ॥ सो० ॥ १५ ॥ खाति नक्षत्र तणुं वली जी, जल अहिना मुख मांय ॥ ते विष जगमां नीपन्यु जी, मोती शीपशुं त्यांय ॥ सो ॥१३॥ जू विमल ते वाणियो जी, अव्य नहिं तस सार॥जिन प्रासा द करावतां जी, शुन्ज गति पाम्यो अपार ॥ सो॥ ॥ १४ ॥ धन कुमारग तणुं वली जी, नवि खरच्यु शुज काय ॥ ते पुर्गति पामे सदा जी, अपजश गामो गाम ॥ सो ॥ १५ ॥ मुम्मण नंद ने सागरो जी, मेली धननी रे कोड ॥ खरच्या विण नरगें गया जी, म म हो एहनी जोड ॥ सो ॥ १६ ॥ वली चोथो नेदज कहुँ जी, अन्याय तj धन जास ॥ पोखे तेह कुपात्रने जी, सुख नवि होवे तास ॥ सो ॥ १७ ॥ हणी धेनुने पोखतो जी, काग तणे नर जेह ॥ फल नवि पामे दान- जी, शुजगति न लहे तेह ॥ सो ॥ १७ ॥ अन्याय तणे अव्ये व ली जी, करे श्राइज बाल ॥ पूर्वज तृपता त्यां नहिं जी, होय तृपता चंमाल ।सो॥रणाप्रायें धन अन्या हि० ९ For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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