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(१३१) वीर होशे आंहीं ॥ जाण ॥३॥ बारमा देव लोकें श्राउ, तेणें बांध्युं ज्यारें ॥ उंचो चढे सोातमा, सुणी कुंडनि त्यारें ॥ ना० ॥ ४॥ अभिनव मिथ्या त्वी घरे, नीखारी पेरें ॥ अडद अपाव्या त्यां सहि, वृष्टि दुश् बहु पेरें ॥ ना ॥५॥ जीरण शेठ सुण तो नहिं, देवकुंकुनि कान ॥ थोडी वारमाहे फल हलत, तो केवल झान ॥ ना ॥ ६॥ नाव अधि को ते वती, नावे तोहे पुण्य ॥ एणी परें देतां नो तलं, ते जगमां धन्य ॥ ना० ॥ ७॥ एवं निमंत्रणुं नर करे, अन्नादिक जेह ॥औषध काज गुरु मुनि, तमो करजो तेह ॥ ना ॥ ॥ वले मंदिर एह नहोतरु, मुनि वरने देह ॥राजन पूजा आवे तेडवा, मन हरख धरे ॥ जाण ॥ए ॥ नाम लिये बहु व स्तुनां, विण वहोमु पुण्यो ॥ मनें चिंते पुण्यज सही, वचनें वली मान्यो ॥ ना ॥ १० ॥ दीधे कल्पपुम फल्यो, नवि पुण्यनो पारो ॥ नाम न ले घणी वस्तुना, तेहनी हाणि अपारो ॥ ना॥११॥
॥ ढाल ॥ चोपाईनी देशी॥ ॥ जावें आहार नर आपे जेह, शालिन रिकि पामे तेह ॥ औषध दीये श्राविका रेवती, तीर्थंकर
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