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श्री
कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद |
॥ ४३ ॥
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मस्तक तथा हाथ पैर का भक्षण करता है उसे अनुक्रम से राज्य, हजार सुवर्ण मुहरें तथा पाँच सौ सुवर्ण मुहरें प्राप्त होती हैं । जो मनुष्य दरवाजे की अर्गला का, शय्या का, हिंडोले का, पादुका का तथा घर का भंग देखता है उसकी स्त्री का नाश होता है। जो मनुष्य तलाव, समुद्र, जल से भरी नदी तथा मित्र की मृत्यु देखता है उसको विना निमित्त धन की प्राप्ति होती है। जो स्वप्न में गोबर मिश्रित गडुल तथा दवा सहित तपा हुआ पानी पीता है वह मनुष्य निश्चय ही अतिसार रोग से मृत्यु पाता है। जो मनुष्य स्वप्न में देवता की प्रतिमा की यात्रा, स्नान, भेट तथा पूजा आदि करता है उसे सब तरफ से वृद्धि होती है । जो मनुष्य अपने हृदयरूप तलाव में कमल उत्पन्न हुए देखता है वह कुष्टी होकर तुरन्त मृत्यु प्राप्त करता है। जो मनुष्य स्वप्न में मनोहर घी प्राप्त करता है उसे निर्मल यश की प्राप्ति होती है। तथा क्षीरान के साथ घी का खाना देखे तो भी प्रशस्त है । स्व में इसे तो शोक होता है । नाचने से बन्धन और पढ़ने से क्लेश होता है। गाय, घोड़ा, राजा, हाथी और देव सिवाय सब ही काले रंग के स्वप्न खराब समझना चाहिये, तथा कपास और नमक के सिवा सुफेद रंग के सब ही स्वझ श्रेष्ठ समझना चाहिये । जो स्वम शुभ या अशुभ अपने लिए देखा हो उसका शुभाशुभ फल अपने लिए और जो दूसरों के लिए देखा हो उसका शुभाशुभ फल दूसरे के लिए होता है । यदि खराब स्वम देखा हो तो देव गुरु का पूजन करना उचित है तथा यथाशक्ति तप दान करना योग्य है कि जिस से धर्म के प्रभाव से कुस्वप्न भी सुस्वप्न का फल दे देता है। इस तरह हे देवानुप्रिय ! हे सिद्धार्थ राजन् ! हमारे ॥ ४३ ॥
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चौथा व्याख्यान.