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स्वप्नशास्त्रों में बैतालीस स्वप्न साधारण फल देनेवाले और तीस महास्वप्न उत्तम फल देनेवाले हैं। इस प्रकार सब मिलाकर बहत्तर स्वप्न कहें हैं। उन में भी हे देवानुप्रिय ! अरिहन्त की माता अथवा चक्रवर्ती की माता अरिहन्त या चक्रवर्ती के गर्भ में आने पर इन तीस महास्वप्नों में से ऐसे चौदह महास्वप्न देखकर जागृत होती है। वे चौदह महास्वप्न गज, वृषभादि। वासुदेव की माता वासुदेव के गर्भ में आने पर इन्ही चौदह महास्वप्नों में से केवल सात स्वप्न देखती है । बलदेव की माता बलदेव के गर्भ में आने पर इन्ही चौदह महास्वप्नों में से मात्र चार स्वप्न देखती है और मण्डलिक की माता मंडलिक के गर्भ में आने पर इन्ही चौदह महास्वप्नों में से केवल एक स्वप्न देखती है। इस लिए हे देवानुप्रिय ! त्रिशला क्षत्रियाणीने तो ये चौदह ही प्रशस्त महास्वप्न देखे हैं । हे देवानुप्रिय ! त्रिशला क्षत्रियाणीने यावत् मंगलकारक स्वप्न देखे हैं। इससे हे देवानुप्रिय ! आप को अर्थ का लाभ, भोग का लाभ, पुत्र का लाभ, सुख का लाभ और राज्य का लाभ होगा। इस तरह हे देवानुप्रिय ! त्रिशला क्षत्रियाणी नव मास संपूर्ण होने पर साढ़े सात रात्रिदिन व्यतीत होने पर आपके कुल में ध्वज समान, दीपक समान, मुकुट समान, पर्वत समान, तिलक समान, कुल की कीर्ति करनेवाला, कुल का निर्वाह करनेवाला, कुल में सूर्य समान, कुल का आधाररूप, कुल का यश करनेवाला, कुल में वृक्ष के समान, कुल की परम्परा को बढ़ानेवाला, सुकोमल हाथ पैर के तलियोंवाला, परिपूर्ण पंचेन्द्रिय युक्त शरीरवाला, लक्षण और व्यंजनों के गुणों से युक्त, मान उन्मान के प्रमाण से परिपूर्ण और अच्छी तरह प्रगट हुए अवयवों
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