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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir प्रकाशमान हो गई, जाज्वल्यमान् सूर्य की हजारों किरणों से अन्धकार दूर हुआ, उस वक्त सिद्धार्थ राजा अपनी शय्या से उठकर व्यायामशाला में गया । वहाँ पर अनेक प्रकार के मल्लयुद्धादि के व्यायाम कर के जब राजा परिश्रमित हो गया, अर्थात् जब वह अनेकविध व्यायाम के करने से थक गया तब सौ औषधियों से बनाये। हुए, या सौ द्रव्य खर्चने से पैदा हुए शतपक्क तेल से तथा हजार औषधियों या हजार मूल्य लगने से उत्पन्न हुए सहस्र पक्क तेल से अपने शरीर में मर्दन कराने लगा, जो मर्दन अत्यन्त गुणकारी, रस, रुधिर धातुओं की वृद्धि करनेवाला, क्षुधा अग्नि को दीप्त करनेवाला, बल, मांस, उन्माद को बढ़ानेवाला, कामोद्दीपक, पुष्टिकारक तथा सर्व इंद्रियों को सुखदायक था। वे मर्दन करनेवाले भी संपूर्ण अंगुलियों सहित सुकुमार हाथ पैरवाले, मर्दन करने में प्रवीण और अन्य मर्दन करनेवालों से विशेषज्ञ, बुद्धिमान, तथा परिश्रम को जीतनेवाले थे । उन मनुष्योंने अस्थि, मांस, त्वचा, रोम इन चारों को सुखदायक हो ऐसा मर्दन किया। इसके बाद सिद्धार्थ राजा व्यायामशाला से निकल कर मोतियों से व्याप्त गवाक्षवाले, अनेक प्रकार के चंद्र कान्तादि, तथा वैडूर्यादि रत्नों से जड़े हुए आँगनवाले मजन घर में प्रवेश करता है। मजन घर में जाकर वहाँ पर नाना प्रकार के मणि रत्नजड़ित स्नानपीठ पर बैठता है और वहां पर उसने अनेक पुष्पों के रस सहित, चंदन, कपूर, कस्तूरीयुक्त पवित्र निर्मल कवोष्ण जल से कल्याणकारक स्नानविधि से स्नान किया। तदनन्तर उसने पद्मयुक्त सुकुमार, केशर, चंदन, कस्तूरी आदि सुगंधित द्रव्यों से वासित वस्त्र से शरीर को पोंच्छ कर, फिर प्रधान For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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