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कल्पसूत्र
हिन्दी अनुवाद।
॥३८॥
उचित नहीं, यह विचार कर देव गुरुजन सम्बन्धी प्रशस्त धर्मकथाओं से स्वप्न जागरिका करती है। स्वयं तीसरा जागती हुई सेवक सखीजनों को जगाती हुई और धर्मकथाओं द्वारा रात्रि को व्यतीत करती है।
व्याख्यान. अब प्रातःकाल होने पर सिद्धार्थ राजा अपने सेवकों को बुलाकर कहता है-हे महानुभावो! आज उत्सव का दिन है इसलिए जाओ बाहर की उपस्थानशाला-बैठक को साफ कराओ, सुगंधवाले जल का छिड़काव कराओ, गोबर आदि से लिपाओ, पंचवर्णीय सुगंधवाले पुष्पों से सुगंधित कराओ तथा सुलगते हुए कृष्णागुरु, कुन्दरुष्क, तुरुष्क आदि उत्तम प्रकारके धूप से मघमघायमान करो, यह सब कार्य तुम स्वयं करो और दूसरों से कराओ तथा शीघ्र ही वापिस आकर आज्ञापालन की खबर दो। उन आज्ञाकारी राजपुरुषोंने विनययुक्त हाथ जोड़कर राजा की आज्ञा सुनी और उसे स्वीकार कर वहाँ से चले गये । थोड़ी ही देर में उन्होंने राजाज्ञा के | अनुसार सर्व कार्य कर के राजा के पास वापिस आकर निवेदन कर दिया।
सिद्धार्थ राजा का दैनिक कार्यक्रम । इधर सूर्योदय के समय सरोवरों में कमल विकसित होने लगे, रात्रि में कृष्ण मृगों के निद्रा से मिचे हुए IN नेत्र खुलने लगे, लाल अशोक वृक्ष की कान्तिसमूह, फूले हुए केसू के पुष्प, तोते के मुख, चणोटी-गुंजा के अर्ध भाग, कबूतर के पैर, क्रोधित कोकिल के नेत्र, जासूद के पुष्प, जातिवान् हिंगुल के पुंज तुल्य, बन्धुक लाल पुष्प के समान रक्तवर्णवाला प्रभातसमय हुआ। जगत्भर में कुंकुम समान लालिमा छागई, दिशायें ॥३८॥
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