SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandie विस्तृत करनेवाला होगा। वह पुत्र हमारे कुल में वृक्ष के समान दूसरों को आश्रय देनेवाला होगा, उसके हाथ पैर सुकोमल होंगे, उसका शरीर यथायोग्य अवयवों से तथा संपूर्ण पंचेंद्रियों सहित, सर्व प्रकार के प्रशस्त लक्षणों एवं व्यंजनों से युक्त, मानोन्मान प्रमाण से सर्वांग सुन्दर होगा। पूर्ण चंद्र के समान उसकी सौम्याकृति होगी और वह सबको देखने में प्रिय लगेगा क्यों कि सबसे अधिक उसका रूपसौन्दर्य होगा। वह पुत्र जब बाल्यावस्था को त्याग कर यौवनावस्था के सन्मुख होगा, पर्थात् जब वह परिपक्क विज्ञानवान् होगा तब बड़ा शूरवीर, अंगीकृत कार्य को निभाने में समर्थ, संग्राम करने में, परराष्ट्र पर आक्रमण करने में बड़ा पराक्रमी, विपुल बल वाहनवाला तथा राजाओं का भी राजा महान् सम्राट् होगा । इस लिए हे देवानुप्रिये ! तुमने बड़े ही उत्तम स्वप्न देखे हैं। त्रिशला क्षत्रियाणी सिद्धार्थ राजासे पूर्वोक्त स्वमों का अर्थ सुन कर संतुष्ट हो हर्ष से पूर्ण हृदयवाली होकर दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर अंजलि कर के विनयपूर्ण वचनों से बोली-हे स्वामिन् ! आप का वचन सत्य है, जो आपने फरमाया वह सर्वथा यथार्थ है, मैं आप के कथन किये अर्थ को संदेह रहित स्वीकारती हूं। इस प्रकार सिद्धार्थ राजा के कथन किये अर्थ को याद रखती हुई और उन चतुर्दश महास्वप्नों को स्मरण करती हुई राजा की आज्ञा लेकर अनेक प्रकार के मणि रत्नजडित सुवर्ण के भद्रासन से उठ कर त्रिशला रानी पूर्वोक्त राजहंसी के समान गति से अपने शयनागार में चली जाती है। वहाँ जाकर मेरे देखे हुए ये सर्वोत्कृष्ट प्रधान मंगलकारी चौदह महास्वप्न किसी खराब स्वप्न के देखने से निष्फल न हो इस लिए अब निद्रा लेना For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy