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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir तीसरा व्याख्यान. कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद । ॥३९॥ वस्त्र धारण किये, गोशीर्षचंदन का विलेपन किया, पवित्र पुष्पमालायें पहनी, केशर आदि का तिलक लगाया। मणि, रत्न और सुवर्ण के बने हुए आभूषण पहने, अठारह, नव, तीन और एक लड़ी के हार गले में धारण किये । कीमती हीरों और मणियों से जड़े हुए मोतियों के लम्बे २ फुदो सहित कमर में कटिभूषण पहना । हीरे माणिक्यादि के कंठे पहने, अंगुलियों में अंगूठी आदि पहनी, और अनेक प्रकार की मणियों से बने हुए बहुमूल्यवान् जड़ाउ कड़े हाथों में तथा भुजाओं के आभूषण भुजाओं में पहने। इसीप्रकार कीमती कुंडलों से राजा का मुखमंडल शोभता है, मुकुट से मस्तक दीपता है, अंगूठियों से अंगुलियाँ पीली हो गई है, बहुमूल्य अत्यन्त उत्तम वस्त्र का उत्तरासन किया है, नाना प्रकार के रत्न और मणियों से जड़ा हुआ सुवर्ण का चतुर कारीगर द्वारा बना हुआ वीरतासूचक वीरवलय भुजा में धारण किया है जिस के धारण करने से वह वीर पुरुष सिद्धार्थ अन्य किसी से जीता न जा सकता था। अधिक क्या वर्णन किया जाय? जिस प्रकार कल्पवृक्ष पुष्पपत्तों से अलंकृत और विभूषित होता है वैसे ही सिद्धार्थ राजा भी आभूषणों से अलंकृत और वस्त्रों से विभूषित था, कोरंट | वृक्ष के श्वेत पुष्पों की माला से सुशोभित छत्र मस्तक पर धारण किये हुए था, अति उज्वल चमर दुल रहे थे, चारों तरफ लोग राजा की जय जयकार कर रहे थे। इस प्रकार सब तरह से अलंकृत हो कर अनेक दंडनायक, गणनायक, राजेश्वर, सामन्त, महासामन्त, मंडलिक, मंत्री, महामंत्री, सेठ, सार्थवाह, अंगरक्षक, पुरोहित, दंडधर, धनुषधर, खड्गधर, छत्रधारी, चंवरधारी, ताम्बूलधारी, शय्यापालक, गजपालक, अश्वपालक, अंगमर्दक, | | ३९॥ IAll For Private And Personal
SR No.020376
Book TitleHindi Jain Kalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Sabha
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1949
Total Pages327
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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